डूब के देख लिया दर्द की गहराई में आज की रात गुज़र जाएगी तन्हाई में शम-ए-दिल लाया हूँ ये सोच के महफ़िल में तिरी हो कमी कुछ न तिरी अंजुमन-आराई में बे-सबब होगा मिरे साथ में रुस्वा वो भी नाम उस का भी है शामिल मेरी रुस्वाई में बा'द मुद्दत के उसे देखा तो एहसास हुआ हर दबी चोट उभर आती है पुर्वाई में यूँ तो हर एक अदा है तिरी ज़ालिम लेकिन है क़यामत ही क़यामत तिरी अंगड़ाई में चाक-दामाँ की नुमाइश में ये ग़म हैं मुझ को वो भी मौजूद था उस वक़्त-ए-तमाशाई में कह दो मुतरिब से 'नज़र' साज़-ए-मोहब्बत न बजा उस की पाज़ेब की झंकार है शहनाई में