डूबा हुआ हूँ दर्द की गहराइयों में भी मैं ख़ंदा-ज़न हूँ खोखली दानाइयों में भी उर्यां है सारा शहर चली यूँ हवस की लहर तुझ को छुपा रहा हूँ मैं तन्हाइयों में भी कैसे थे लोग जिन की ज़बानों में नूर था अब तो तमाम झूट है सच्चाइयों में भी अब नेक-नामियों में भी कोई मज़ा नहीं पहले तो एक लुत्फ़ था रुस्वाइयों में भी वो दौड़ है किसी को किसी की ख़बर नहीं अब कितनी ग़ैरियत है शनासाइयों में भी रंगीन साअतों में कहाँ वो मलाहतें परछाइयों का जाल है रानाइयों में भी हम जिन के वास्ते थे तमाशा बने हुए देखा तो वो नहीं थे तमाशाइयों में भी मैं ही था वो जो अपने ही तेशे से मर गया ही ही था शहर-ए-जब्र के बलवाइयों में भी क्या दौर है कि जिस में सदा भी सुकूत है तन्हाइयाँ हैं अंजुमन-आराइयों में भी वो प्यार दो कि जिस की चमक माँद ही न हो होता है ये ख़ुलूस तो हरजाइयों में भी साज़ ओ सदा के शोर में गुम हो गया 'जमील' किस किस के दिल का दर्द था शहनाइयों में भी