डूबा हुआ उठूँ दम-ए-महशर शराब में दे दें कफ़न जो यार डुबो कर शराब में माने न माने कोई प इतना कहेंगे हम है ज़ौक़-ए-बे-ख़ुदी तो मुक़र्रर शराब में मानें जो मेरी बात मुरीदान-ए-बे-रिया दें शैख़ को कफ़न तो डुबो कर शराब में किस के ख़िराम-ए-नाज़ से मिलती है मौज-ए-जाम बरपा है एक फ़ित्ना-ए-महशर शराब में वो रिन्द-ए-बादा-कश हूँ कि 'माइल' पस-ए-फ़ना जल्वे ने तिरे क़हर उठाया नक़ाब में