दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की और दामन-ए-क़ातिल की हवा और तरह की दीवार पे लिक्खी हुई तहरीर है कुछ और देती है ख़बर ख़ल्क़-ए-ख़ुदा और तरह की किस दाम उठाएँगे ख़रीदार कि इस बार बाज़ार में है जिंस-ए-वफ़ा और तरह की बस और कोई दिन कि ज़रा वक़्त ठहर जाए सहराओं से आएगी सदा और तरह की हम कू-ए-मलामत से निकल आए तो हम को रास आई न फिर आब-ओ-हवा और तरह की