दुख की लहर ने छेड़ा होगा याद ने कंकर फेंका होगा आज तो मेरा दिल कहता है तू इस वक़्त अकेला होगा मेरे चूमे हुए हाथों से औरों को ख़त लिखता होगा भीग चलीं अब रात की पलकें तू अब थक कर सोया होगा रेल की गहरी सीटी सुन कर रात का जंगल गूँजा होगा शहर के ख़ाली स्टेशन पर कोई मुसाफ़िर उतरा होगा आँगन में फिर चिड़ियाँ बोलीं तू अब सो कर उट्ठा होगा यादों की जलती शबनम से फूल सा मुखड़ा धोया होगा मोती जैसी शक्ल बना कर आईने को तकता होगा शाम हुई अब तू भी शायद अपने घर को लौटा होगा नीली धुंदली ख़ामोशी में तारों की धुन सुनता होगा मेरा साथी शाम का तारा तुझ से आँख मिलाता होगा शाम के चलते हाथ ने तुझ को मेरा सलाम तो भेजा होगा प्यासी कुर्लाती कूंजों ने मेरा दुख तो सुनाया होगा मैं तो आज बहुत रोया हूँ तू भी शायद रोया होगा 'नासिर' तेरा मीत पुराना तुझ को याद तो आता होगा