दुखा दिल भी टुकड़े जिगर होते होते इधर भी उठा दर्द उधर होते होते जवानी का जोबन ढला दिन की सूरत ज़वाल आ गया दोपहर होते होते दिल-ए-ना-मुराद इक हज़ार आरज़ूएँ उसे चाहिए उम्र-भर होते होते नहाने में ज़ंजीर-ए-पा तौक़-ए-गर्दन बने हल्क़ा हल्क़ा भँवर होते होते वो जा अपने पहलू में दे ही ये मुश्किल जो होगा भी तो दिल में घर होते होते हरम जाते जाते गए मय-कदे में इधर हो गए 'शाद' उधर होते होते