दुखाता है मिरा दिल बे अलिफ़ रे हुआ हूँ रंज से मैं ज़े अलिफ़ रे उड़ाईं धज्जियाँ भी तू ने लेकिन छुटा दामन न तुझ से ख़े अलिफ़ रे गरेबाँ-गीर है ये जो वहशत न रक्खा नाम को भी ते अलिफ़ रे ख़ुशी से काट ले क़ातिल मिरा सर हुआ है अब तो मुझ को बे अलिफ़ रे निगाहों को कहूँ क्यूँ-कर न बर्छी कि सीने से हुई हैं पे अलिफ़ रे इलाही ज़े अलिफ़ रे तो हुआ हूँ प चश्म-ए-ग़ैर में हूँ ख़े अलिफ़ रे लिया है दिल तुम्हारा उस ने 'अंजुम' करे आँखें वो क्यूँकर चे अलिफ़ रे तसव्वुर गुल-रुख़ों का 'आसमाँ' क्यूँ गले का हो गया है हे अलिफ़ रे