दुखों में उस के इज़ाफ़ा भी मैं ही करता हूँ और इस कमी का इज़ाला भी मैं ही करता हूँ ज़रा बहुत मिरी झुंझलाहटें भी जाएज़ हैं कि मदह-ए-साहब-ए-वाला भी मैं ही करता हूँ ख़ुशी के ख़्वाब सजाता ज़रूर हूँ लेकिन सफ़-ए-मलाल को सीधा भी मैं ही करता हूँ न अपने फ़े'अल का ग़म है न अपने क़ौल का दुख निबाहता हूँ तो व'अदा भी मैं ही करता हूँ तिरे विसाल की ख़ुशबू भी सिर्फ़ मेरी है तिरे बग़ैर गुज़ारा भी मैं ही करता हूँ