दुल्हन भी अगर बन के आएगी रात हमें बे-तुम्हारे न भाएगी रात हमें हिज्र में ख़ूँ रुलाएगी रात हमारे लहू में नहाएगी रात बहुत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में दिन चढ़ गया उठो सोने वालो फिर आएगी रात हम उस से ज़ियादा सियह-बख़्त हैं हमें तीरगी क्या दिखाएगी रात न टाले टलेगा ये रोज़-ए-फ़िराक़ क़सम आज आने के खाएगी रात 'सख़ी' अड़ के बैठी है घर पर मिरे बस अब जान ही ले के जाएगी रात