दुनिया ख़याल-ओ-ख़्वाब है मेरी निगाह में आबाद सब ख़राब है मेरी निगाह में बहती फिरे है उम्र तलातुम में दहर के इंसान जूँ हुबाब है मेरी निगाह में मैं बहर-ए-ग़म को देख लिया ना-ख़ुदा ब-रू कश्ती न हो प आब है मेरी निगाह में छूटा हूँ जब से शैख़ तअय्युन की क़ैद से हर ज़र्रा आफ़्ताब है मेरी निगाह में तुम कैफ़ में शराब के कहते हो जिस को दिल भूना हुआ कबाब है मेरी निगाह में क्यूँ खींचते हो तेग़ कमर से चे-फ़ाएदा मुद्दत से इस की आब है मेरी निगाह में 'हातिम' तू इस जहान की लज़्ज़ात पर न भूल ये पा-ए-दर-रिकाब है मेरी निगाह में