दुनिया की ख़्वाहिशात में उलझा नहीं हूँ मैं उड़ जाए जो हवा में वो तिनका नहीं हूँ मैं बीमार उन को देख के ख़ामोश हो गया इतना कहा ज़बान से अच्छा नहीं हूँ मैं आता है मुझ को मरकज़-ए-तौहीद का ख़याल मुँह से निकल न जाए कि बंदा नहीं हूँ मैं हर दम यही दुआ है कि बेताबियाँ रहें ये हाल हो गया है कि अपना नहीं हूँ मैं आसाँ नहीं है मेरी हक़ीक़त को जानना मिल जाए जो सभों को वो रस्ता नहीं हूँ मैं मेरे ही दम से है ये मिरे दिल की बेकली अपने मरज़ का आप मुदावा नहीं हूँ मैं है आफ़ियत में जान जो मिलता नहीं कोई अच्छा है ये 'शमीम' कि अच्छा नहीं हूँ मैं