दुनिया में हम जो अपनी हक़ीक़त को पा गए तो ज़िंदगी के राज़ समझ में सब आ गए ये सोचते हैं सिर्फ़ यही सोचते हैं अब हम तेरे दर पे लाए गए हैं कि आ गए कलियों को खुल के हँसने का अंदाज़ आ गया गुलशन में आ के तुम जो ज़रा मुस्कुरा गए अपना मक़ाम भी मुतअय्यन न कर सके वो क्या कहेंगे दहर में क्या आए क्या गए ज़ेबा था उन को दावा-ए-तामीर-ए-गुलसिताँ जो बिजलियों में रह के नशेमन बना गए इक हम हैं राह ढूँड रहे हैं इधर उधर इक वो हैं ख़ुश-नसीब जो मंज़िल को पा गए राह-ए-वफ़ा में आए हैं वो मरहले जहाँ 'माइल' बड़े-बड़ों के क़दम डगमगा गए