दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है मौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है आबादी भी देखी है वीराने भी देखे हैं जो उजड़े और फिर न बसे दिल वो निराली बस्ती है ख़ुद जो न होने का हो अदम क्या उसे होना कहते हैं नीस्त न हो तो हस्त नहीं ये हस्ती क्या हस्ती है इज्ज़-ए-गुनाह के दम तक हैं इस्मत-ए-कामिल के जल्वे पस्ती है तो बुलंदी है राज़-ए-बुलंदी पस्ती है जान सी शय बिक जाती है एक नज़र के बदले में आगे मर्ज़ी गाहक की इन दामों तो सस्ती है वहशत-ए-दिल से फिरना है अपने ख़ुदा से फिर जाना दीवाने ये होश नहीं ये तो होश-परस्ती है जग सूना है तेरे बग़ैर आँखों का क्या हाल हुआ जब भी दुनिया बस्ती थी अब भी दुनिया बस्ती है आँसू थे सो ख़ुश्क हुए जी है कि उमडा आता है दिल पे घटा सी छाई है खुलती है न बरसती है दिल का उजड़ना सहल सही बसना सहल नहीं ज़ालिम बस्ती बसना खेल नहीं बसते बसते बस्ती है 'फ़ानी' जिस में आँसू क्या दिल के लहू का काल न था हाए वो आँख अब पानी की दो बूँदों को तरसती है
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