दुनिया मिज़ाज-दान-ओ-मिज़ाज-आश्ना न थी दुनिया के पास ज़हर बहुत था दवा न थी रौशन था दिल में सिर्फ़ किसी याद का चराग़ घर में कोई भी रौशनी उस के सिवा न थी मैं था वफ़ा-सरिश्त मुझे थी वफ़ा अज़ीज़ वो था बहाना-जू उसे ख़ू-ए-बहा न थी यूँ कोई मेरे पास से हो कर गुज़र गया जैसे कभी नज़र से नज़र आश्ना न थी बे-वज्ह संगसार जो मुझ को किया गया वो थी इक इंतिक़ाम की सूरत सज़ा न थी दिल भी किसी के जौर पे था दम-ब-ख़ुद 'ज़फ़र' लब पर भी एहतिजाज की कोई सदा न थी