दुनिया से आज जज़्ब-ए-वफ़ा माँगता हूँ मैं ये जुर्म है अगर तो सज़ा माँगता हूँ मैं किस मोड़ पर हयात के छोड़ा है तुम ने साथ इक इक से आज अपना पता माँगता हूँ मैं मैं ने तो की थी दर्द-ए-मुसलसल की आरज़ू तुम को गुमाँ हुआ कि दवा माँगता हूँ मैं रानाई-ए-बहार बढ़ाने के वास्ते तेरा जमाल तेरी अदा माँगता हूँ मैं बरसाओ मुझ पे संग ब-नाम-ए-ख़ुलूस-ए-इश्क़ अपने किए की आप सज़ा माँगता हूँ मैं तुम माँगते हो सारी ख़ुदाई तो माँग लो अपने लिए तो सिर्फ़ ख़ुदा माँगता हूँ मैं क्या जाने अब समेट के सारी तबाहियाँ इस दौर-ए-इज़्तिराब से क्या माँगता हूँ मैं क़ातिल को ग़म-गुसार समझता हूँ अब 'रईस' मक़्तल में ज़िंदगी की दुआ माँगता हूँ मैं