दुनिया से कभी हम को निभाना नहीं आया फिर हम से निभाने को ज़माना नहीं आया ख़ुद से किया वा'दा भी निभाना नहीं आया आना ही न था हम को न आना नहीं आया क्यों रखते हो उम्मीद मना लेंगे तुम्हें हम हम से तो कभी ख़ुद को मनाना नहीं आया सुनते हैं कि हर शख़्स को मिलती है मोहब्बत हिस्से में हमारे ये ख़ज़ाना नहीं आया वो दौर भी गुज़रा है जहाँ रुक सी गई थी फिर ख़ुद से ही मिलने का ज़माना नहीं आया उन को ये बताना था हमें प्यार नहीं है मिलने पे वही हम को बताना नहीं आया बाज़ार सी रौनक़ तो बना ली थी प उन को घर प्यार मोहब्बत से सजाना नहीं आया