दुनिया से तब डर लगता है बेटी को जब पर लगता है अंदर का तो सूफ़ी जाने पर अच्छा पैकर लगता है तुम ने तो गुल तोड़ लिए मुझ को छूते डर लगता है सहरा से अंजान लगो हो तुम को ये दर घर लगता है मैं ने उस को रोते देखा जो तुझ को पत्थर लगता है तुम ने हाल तो पूछा है पर मुझ को कहते डर लगता है