दुनिया-ए-दनी है मतलब की सब रिश्ते नाते तोड़ दिए अब ख़ुद पे भरोसा करना है जितने थे सहारे छोड़ दिए अब दिल से दिल का मिलना क्या बस हाथ मिलाना काफ़ी है देरीना तौर तरीक़ों ने चलते चलते दम तोड़ दिए दुनिया-ए-मोहब्बत के अंदर नफ़रत का अँधेरा जिन से बढ़े उस दौर-ए-तरक़्क़ी के ऐसे जितने हैं उठा कर तोड़ दिए जो आँधियों से टकरा भी सकें ज़ुल्मत का फ़ुसूँ भी तोड़ सकें ताक़ों में सजा कर पहले ही तो कुछ ऐसे रख छोड़ दिए क्या मिलना-जुलना आपस में ये सब कहने की बातें हैं हम देख चुके इस दौर ने तो दिल तोड़ दिए सर जोड़ दिए जब ज़ुल्म के तूफ़ाँ उमड़े हैं जब यास के बादल छाए हैं दुनिया को दिया है अज़्म-ए-जवाँ तारीख़ को हम ने मोड़ दिए ऐ दौर-ए-सियासत अहद-ए-ज़बूँ 'जर्रार' से ये उम्मीद न रख उस दर पे झुका दी पेशानी हाथ उस के आगे जोड़ दिए