दुनिया-ए-ग़म को ज़ेर-ओ-ज़बर कर सके तो कर रहमत की मुझ पे एक नज़र कर सके तो कर ऐ दिल तू ऐसी आह अगर कर सके तो कर दुनिया उधर की आज इधर कर सके तो कर ऐ आह-ए-बर्क़-रेज़ तुझे रोकता है कौन उस बे-ख़बर को मेरी ख़बर कर सके तो कर मशहूर है कि इश्क़ की राहें हैं ख़ौफ़नाक हिम्मत से पहले पूछ सफ़र कर सके तो कर आरिज़ हैं तेरे ज़ुल्फ़ें भी तेरी किसी से क्या इक जा पे जम्अ शाम-ओ-सहर कर सके तो कर नादाँ हदीस-ए-इश्क़ के मअ'नी कुछ और हैं क़ाबू में दिल को अपने अगर कर सके तो कर ऐ आह तू ही हौसला अपना निकाल ले उस संग-दिल के दिल पे असर कर सके तो कर 'आलिम' जहान-ए-इश्क़ कि दुश्वारियाँ न पूछ दिल को जो राज़दार-ए-जिगर कर सके तो कर