दुनिया-ए-सितम ज़ेर-ओ-ज़बर हो के रहेगी जब रात हुई है तो सहर हो के रहेगी तलवार से जागे कि नसीम-ए-सहरी से हुशियार मगर रूह-ए-बशर हो के रहेगी बन जाएँगे गुल राह में बिखरे हुए काँटे हिम्मत है तो तकमील-ए-सफ़र हो के रहेगी ये हुस्न-ए-तसव्वुर मुझे मरने नहीं देता इक दिन मिरी जानिब वो नज़र हो के रहेगी तुम ख़ून-ए-तमन्ना को मिरे लाख छुपाओ इक रोज़ ज़माने को ख़बर हो के रहेगी ये बात अलग है कि सहर तक न रहें हम लेकिन ये यक़ीं है कि सहर हो के रहेगी 'शारिब' मैं छुपूँ लाख ज़माने की नज़र से लेकिन ख़बर-ए-ऐब-ओ-हुनर हो के रहेगी