दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह आज तो हम-नशीं उसे ला मिरे घर किसी तरह तीर-ए-मिज़ा हो यार का और निशाना दिल मिरा तीर पे तीर ता-ब-कै कीजे हज़र किसी तरह नाला हो या कि आह हो शाम हो या पगाह हो दिल में बुतों के हाए हाए कीजे असर किसी तरह आई शब-ए-फ़िराक़ है रात है सख़्त ये बहुत कीजे शुमार-ए-अख़तराँ ता हो सहर किसी तरह इश्क़ में दिल से हम हुए महव तुम्हारे ऐ बुतो ख़ाली हैं चश्म-ओ-दिल करो इन में गुज़र किसी तरह