दूर तक इक सराब देखा है वहशतों का शबाब देखा है ज़ौ-फ़िशाँ क्यूँ हैं दश्त के ज़र्रे क्या कोई माहताब देखा है बाम ओ दर पर है शोलगी रक़्साँ हुस्न को बे-नक़ाब देखा है नामा-बर उन से बस यही कहना नीम-जाँ इक गुलाब देखा है अब ज़मीं पर क़दम नहीं टिकते आसमाँ पर उक़ाब देखा है मेरी नज़रों में बाँकपन कैसा जागता हूँ कि ख़्वाब देखा है