दूर तक जब दीदा-ए-नमनाक देखे जाएँगे शहर के सब ज़ालिम-ओ-सफ़्फ़ाक देखे जाएँगे बोलने पर जब यहाँ पाबंदियाँ लग जाएँगी ऐसे आलम में भी हम बे-बाक देखे जाएँगे जब बरहना नस्ल-ए-नौ पूरी तरह हो जाएगी हम तो तब भी साहिब-ए-पोशाक देखे जाएँगे जब महाज़-ए-इश्क़ से आएगी आवाज़-ए-वफ़ा सब से आगे हम गरेबाँ-चाक देखे जाएँगे हुस्न के दरिया की तह से सीप लाने के लिए फिर मिरे जैसे नए तैराक देखे जाएँगे क्या गुज़र हम जैसे ना-फ़हमों का उन की बज़्म में जल्वा-फ़रमा साहिब-ए-इदराक देखे जाएँगे