दूर तक सूनी पड़ी है रहगुज़र देखेगा कौन अपनी मंज़िल ही नहीं तो राहबर देखेगा कौन चाँदनी की बद-दुआ' अपना असर दिखला गई किस क़दर तारीकियाँ हैं चाँद पर देखेगा कौन जागती आँखों पे आख़िर नींद ग़ालिब आ गई अब तुम्हारा रास्ता भी रात-भर देखेगा कौन अपने घर का साज़-ओ-सामाँ हम ने गिरवी रख दिया हँसते हँसते ज़हर पीने का हुनर देखेगा कौन जान का ख़तरा तो है ही जाल भी कमज़ोर है मछलियों के शौक़ में पानी मगर देखेगा कौन अब ग़ज़ल के नाम पर 'फ़ारूक़' कुछ भी पेश कर लोग सब मसरूफ़ हैं ज़ेर-ओ-ज़बर देखेगा कौन