दूर उफ़ुक़ के पार से आवाज़ के पर्वरदिगार सदियों सोई ख़ामुशी को सामने आ कर पुकार जाने किन हाथों ने खेला रात साहिल पर शिकार शेर की आवाज़ को तरसा किए सूने कछार ख़्वाब के सूखे हुए ख़ाकों में लज़्ज़त का ग़ुबार नींद के दीमक-ज़दा गत्ते के पीछे इंतिज़ार तीरगी कैसे मिटेगी तेरी नुसरत के बग़ैर आसमाँ की सीढ़ियों से नुक़रई फ़ौजें उतार आख़िर-ए-शब सब सितारे सो रहे हैं बे-ख़बर कोई सूरज को ख़बर कर दो कि अब शब-ख़ून मार फैलता जाता है किरनों का सुनहरी जाल फिर जगमगा उट्ठी हैं शमशीरें क़तार-अंदर-क़तार जाने किस को ढूँडने दाख़िल हुआ है जिस्म में हड्डियों में रास्ता करता हुआ पीला बुख़ार जिस्म की मिट्टी न ले जाए बहा कर साथ में दिल की गहराई में गिरता ख़्वाहिशों का आबशार