दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की मंज़िल को मेरी क़ुर्ब से निस्बत है दूर की फ़ुर्क़त ने उस की वस्ल की तशवीश दूर की तस्कीं नहीं है यूँ भी दिल-ए-ना-सुबूर की मूसा के सर पे पाँव है अहल-ए-निगाह का उस की गली में ख़ाक उड़ी कोह-ए-तूर की कहता है अंजुमन को तिरी ख़ुल्द मुद्दई इस बुल-हवस के दिल में तमन्ना है हूर की वाइज़ ने मय-कदे को जो देखा तो जल गया फैला गया चराँद शराब-ए-तहूर की मूसा को क्यूँ न मौज-ए-तजल्ली धकेल दे जल्वे से उस के गुल हुई मशअ'ल शुऊ'र की अरबाब-ए-वक़्त जानते हैं रोज़गार ने की सहव से वफ़ा तो तलाफ़ी ज़रूर की रुस्वाइयों का हौसला घट घट के बढ़ गया सामाँ है ख़ामुशी मिरी शोर-ए-नुशूर की मेल आसमाँ का सू-ए-ज़मीं बे-सबब नहीं ज़ेर-ए-क़दम जगह है सर-ए-पुर-ग़ुरूर की उस से न मिलिए जिस से मिले दिल तमाम उम्र सूझी हमें भी हिज्र में आख़िर को दूर की पामाल कर रहा है सियह-रोज़ियों का जोश मिट्टी ख़राब है मिरे कलबे में नूर की क्या एक क़ुर्ब-ए-ग़ैर का सदमा न पोछिए हैं दिल के आस पास बला दूर दूर की मज़मूँ मिरे उड़ाए 'क़लक़' सब ने इस क़दर सुनता हूँ मैं तराना ज़बानी तुयूर की