दुरुस्त है कि मिरा हाल अब ज़ुबूँ भी नहीं मक़ाम-सज्दा कि ये जाम सर-निगूँ भी नहीं नहीं कि शोरिश-ए-बज़्म-ए-तरब फ़ुज़ूँ भी नहीं दलील-ए-शोरिश-ए-जाँ इक चराग़-ए-ख़ूँ भी नहीं हदीस-ए-शौक़ अभी मुख़्तसर है चुप रहिए अभी बहार का क्या ग़म अभी जुनूँ भी नहीं अभी तो ताक़-ए-हरम में जलाइए शमएँ अभी हरीफ़-ए-सनम जज़्ब-ए-अन्दरूँ भी नहीं अभी ये गुम्बद-ए-सर फोड़ने की कीजे फ़िक्र कि सद्द-ए-राह अभी चर्ख़ नीलगूँ भी नहीं अभी तो गर्द-ए-रह-ए-आस्ताँ से साज़ करें फ़रोग़-ए-दीदा कोई पैकर-ए-फ़ुसूँ भी नहीं है इस क़दर कि निगह बाम-ओ-दर पे फिरती है मगर दिलों को जो तड़पाए वो सुकूँ भी नहीं