दुश्मन-ए-जाँ के लिए लफ़्ज़-ए-मसीहा निकला सच मिरे मुँह से तो निकला मगर आधा निकला दहर में जिस का शरर आग से आगे है कहीं कैसी मिट्टी है ये जिस से तिरा बंदा निकला उस ने जाते हुए बस इतना कहा जाता हूँ मेरे होंटों से फ़क़त हौले से अच्छा निकला देख तो कैसे छलक कर तिरी जानिब लपका तेरे होंटों का तो ये जाम भी प्यासा निकला इक हसीं ने मिरी तक़दीर बदल डाली है मैं जिसे चाँद समझता था सितारा निकला तू ने देखा ही नहीं ज़ुल्म किया है मुझ पर दिल से ईमान-ओ-यक़ीं सारे का सारा निकला वो इमारत सी गिरी थी जो मिरे सीने में उस की बुनियाद से कहते हैं दफ़ीना निकला ऐसा क्या तू ने किया था कि तिरी महफ़िल से मर गया मर गया हर शख़्स ये कहता निकला इश्क़ पाइंदा ओ रख़्शंदा वफ़ा ज़िंदाबाद आप को देख के बे-साख़्ता ना'रा निकला देख तो रंग भी तस्वीर से बिछड़े हुए हैं और तुझ से भी तो अपना यही रिश्ता निकला