दुश्मन के इरादों की ख़बर है कि नहीं है हालात पे कुछ तेरी नज़र है कि नहीं है देखो तो शब-ए-तार के मारे हुए लोगो जो शाम है पाबंद-ए-सहर है कि नहीं है जिस सम्त तुम्हें ले के चली अंधी अक़ीदत उस सम्त कोई राहगुज़र है कि नहीं की और अंधेरे ने मिरी तेज़ बसारत मम्नून मनाज़िर की नज़र है कि नहीं है ये देख ले तू ख़्वाहिश-ए-दस्तार से पहले 'आसी' तिरे काँधे पे भी सर है कि नहीं है