दुश्मन की दोस्ती है अब अहल-ए-वतन के साथ है अब ख़िज़ाँ चमन में नए पैरहन के साथ सर पर हवा-ए-ज़ुल्म चले सौ जतन के साथ अपनी कुलाह कज है उसी बाँकपन के साथ किस ने कहा कि टूट गया ख़ंजर-ए-फ़रंग सीने पे ज़ख़्म-ए-नौ भी है दाग़-ए-कुहन के साथ झोंके जो लग रहे हैं नसीम-ए-बहार के जुम्बिश में है क़फ़स भी असीर-ए-चमन के साथ 'मजरूह' क़ाफ़िले की मिरे दास्ताँ ये है रहबर ने मिल के लूट लिया राहज़न के साथ