दुश्मन-ए-जाँ कोई बना ही नहीं इतने हम लाइक़-ए-जफ़ा ही नहीं आज़मा लो कि दिल को चैन आए ये न कहना कहीं वफ़ा ही नहीं हम पशीमाँ हैं वो भी हैराँ हैं ऐसा तूफ़ाँ कभी उठा ही नहीं जाने क्यूँ उन से मिलते रहते हैं ख़ुश वो क्या होंगे जब ख़फ़ा ही नहीं तुम ने इक दास्ताँ बना डाली हम ने तो राज़-ए-ग़म कहा ही नहीं ग़म-गुसार इस तरह से मिलते हैं जैसे दुनिया में कुछ हुआ ही नहीं ऐ जुनूँ कौन सी ये मंज़िल है क्या करें कुछ हमें पता ही नहीं मौत के दिन क़रीब आ पहुँचे हाए हम ने तो कुछ किया ही नहीं