दुश्मन-ए-जाँ से दोस्ती कर ली यूँ मियाँ हम ने ख़ुद-कुशी कर ली एक मुद्दत से थे परेशाँ कुछ जब न सूझा तो शाइ'री कर ली कहते कहते वो रुक गया लेकिन बात भूले से ही सही कर ली मोम के थे बने किरिच ख़ंजर आग सीने की दो गुनी कर ली धज्जियाँ दिल की फिर रफ़ू-गर ने सी के आशिक़ से दुश्मनी कर ली सर पे इल्ज़ाम दिल में दर्द-ओ-ख़लिश यूँ बसर हम ने ज़िंदगी कर ली वाह 'अबरार' ख़ामुशी ने तिरी पार फिर जद्द-ए-आगही कर ली