दुश्वार है इस अंजुमन-आरा को समझना तन्हा न कभी तुम दिल-ए-तन्हा को समझना हो जाए तो हो जाए इज़ाफ़ा ग़म-ए-दिल में क्या अक़्ल से सौदा-ए-तमन्ना को समझना इक लम्हा-ए-हैरत के सिवा कुछ भी नहीं है कुछ और न इस तुंदी-ए-दरिया को समझना कुछ तेज़ हवाओं ने भी दुश्वार किया है क़दमों के निशानात से सहरा को समझना