ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा आग़ाज़ बता देता है अंजाम तुम्हारा जाते हो कहाँ इश्क़ के बेदाद-कशो तुम उस अंजुमन-ए-नाज़ में क्या काम तुम्हारा ऐ दीदा ओ दिल कुछ तो करो ज़ब्त ओ तहम्मुल लबरेज़ मय-ए-शौक़ से है जाम तुम्हारा ऐ काश मिरे क़त्ल ही का मुज़्दा वो होता आता किसी सूरत से तो पैग़ाम तुम्हारा 'वहशत' हो मुबारक तुम्हें बदमस्ती ओ रिंदी जुज़ इश्क़-ए-बुताँ और है क्या काम तुम्हारा