ऐ बुझे रंगों की शाम अब तक धुआँ ऐसा न था आज घर की छत से देखा आसमाँ ऐसा न था कब से है गिरते हुए पत्तों का मंज़र आँख में जाने क्या मौसम है ख़्वाबों का ज़ियाँ ऐसा न था कोई शय लहरा ही जाती थी फ़सील-ए-शब के पार दूर उफ़ुक़ में देखना कुछ राएगाँ ऐसा न था पेड़ थे साए थे पगडंडी थी इक जाती हुई क्या ये सब कुछ ख़्वाब था सच-मुच यहाँ ऐसा न था फ़ासला कम करने वाले रास्ते शायद न थे अब तो लगता है सफ़र ही दरमियाँ ऐसा न था दिल कि था माइल बहुत वीराँ जज़ीरों की तरफ़ ये हवा ऐसी न थी ये बादबाँ ऐसा न था कोई गोशा ख़्वाब का सा ढूँड ही लेते थे हम शहर अपना शहर 'बानी' बे-अमाँ ऐसा न था