ऐ चिंगारी राख न बन By Ghazal << बहुत दिनों से नज़र में है... अभी ख़याल-ओ-नज़र का ग़ुबा... >> ऐ चिंगारी राख न बन फूँक दे मेरा ही दामन तुझ से वफ़ा की उम्मीदें देख मिरा दीवाना-पन हम दुखियों से हँस कर मिल क्या जोबन क्या माया धन मुझ में अपना अक्स न देख मैं हूँ इक टूटा दर्पन Share on: