ऐ दिल अपनी तू चाह पर मत फूल दिलबरों की निगाह पर मत फूल इश्क़ करता है होश को बर्बाद अक़्ल की रस्म-ओ-राह पर मत फूल दाम है वो अरे कमंद है वो देख ज़ुल्फ़-ए-सियाह पर मत फूल वाह कह कर जो है वो हँस देता आह इस ढब की वाह पर मत फूल गिर पड़ेगा 'नज़ीर' की मानिंद तू ज़नख़दाँ की चाह पर मत फूल