ऐ दोस्त तू ने वार ये भरपूर कर दिया पहले क़रीब कर के मुझे दूर कर दिया रहती हूँ तेरी याद में मदहोश रात दिन तेरे सुरूर-ओ-कैफ़ ने मख़मूर कर दिया किशमिश सी नाज़नीन थी शाख़-ए-बदन मिरी चाहत की आब-ओ-ताब से अंगूर कर दिया ख़ुश्बू तिरे बदन की है साँसों में आज तक तू ने मिलन के बा'द तो पुर-नूर कर दिया तन्हाई ज़िंदगी की कठिन हो गई थी यार लम्स-ओ-सुरूर बख़्श के मसरूर कर दिया मुझ को शराब-ए-इश्क़ पिला ने की देर थी मैं ने भी काएनात को मख़मूर कर दिया मलबा तुम्हारी याद का ढोया है रात दिन नाज़ुक सी एक लड़की को मज़दूर कर दिया देती हैं मुझ को ता'ने मिरी सब सहेलियाँ कहती हैं तुझ को इश्क़ ने मग़रूर कर दिया