ऐ हम-सफ़ीर तलख़ी-ए-तर्ज़-ए-बयाँ न छोड़ तू गालियाँ दिए जा हमें गालियाँ न छोड़ वाइज़ बुतों के चाह-ए-ज़क़न का बयाँ न छोड़ वर्ना कहीं न पाएगा पानी कुआँ न छोड़ पहुँचा दे मक्र-ओ-कैद को हद्द-ए-कमाल तक ऐ दोस्त ना-तमाम कोई दास्ताँ न छोड़ इन रहबरना-ए-क़ौम से या-रब बचा मुझे चर लेंगी सब चमन मिरा ये बकरियाँ न छोड़ फूलों से भर सके न अगर दामन-ए-हवस सेहन-ए-चमन की घास भी ऐ बाग़बाँ न छोड़ बे-वसवसा ग़रीबों पे भी हाथ साफ़ कर मिल जाएँ तो जवार की भी रोटियाँ न छोड़ दीवानों के तो जैब ओ गिरेबाँ का ज़िक्र क्या गर धज्जियाँ भी हाथ लगें मेहरबाँ न छोड़ इंसानियत में बाक़ी है सफ़्फ़ाक दम अभी इक हाथ कस के और उसे नीम-जाँ न छोड़ ज़ालिम उसी ने नाक में दम कर दिया तिरा रगड़े जा ख़ूब गर्दन-ए-अम्न-ओ-अमाँ न छोड़ अब ज़ुल्म में इज़ाफ़ा न कर बानी-ए-जफ़ा क़स्र-ए-सितम के आगे कोई साएबाँ न छोड़ रंज-ओ-अलम का ज़ाइक़ा इक रोज़ तू भी चख ये ख़ास जौनपुर की तू मूलियाँ न छोड़ ऐ 'शौक़' ये जफ़ाएँ हैं क्या ये सितम हैं क्या हर इम्तिहाँ में बैठ कोई इम्तिहाँ न छोड़