ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर अब ज़ुल्म से बाज़ आ जा अब जौर से तौबा कर टूटे हुए पैमाने बेकार सही लेकिन मय-ख़ाने से ऐ साक़ी बाहर तो न फेंका कर जल्वा हो तो जल्वा हो पर्दा हो तो पर्दा हो तौहीन-ए-तजल्ली है चिलमन से न झाँका कर अरबाब-ए-जुनूँ में हैं कुछ अहल-ए-ख़िरद शामिल हर एक मुसाफ़िर से मंज़िल को न पूछा कर