ऐ ज़ालिम तिरे जब से पाले पड़े हमें अपने जीने के लाले पड़े फिरे ढूँडते पा-बरहना तुझे यहाँ तक कि पाँव में छाले पड़े किया है ये तुग़्याँ मिरे अश्क ने कि बहते हैं दुनिया में नाले पड़े चला ग़ैर पर नईं ये तीर-ए-निगाह हमारी ही छाती पे भाले पड़े हमें क्यूँ कि वो शोख़ बाले न दे कि अब कान में कान बाले पड़े मिरा ख़ून-ए-दिल यूँ बहा दश्त में कि जंगल में लोहू के थाले पड़े 'जहाँदार' ग़म है किसी लाला-रू का जो दिल पर तिरे दाग़ काले पड़े