ऐ क़लमकार मिरे हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना वर्ना बे-कार है मज़मून-ए-बलाग़त लिखना अद्ल बिकता है जहाँ सिक्कों की झंकारों में मुस्तहब उन पे नज़र आता है ला'नत लिखना दौर-ए-हाज़िर में है अन्क़ा बशरिय्यत का वजूद सुन मुअर्रिख़ तू इसे दौर-ए-जहालत लिखना हम ने देखी है जिन आँखों में सुलगती नफ़रत कितना मुश्किल है उन आँखों में मोहब्बत लिखना निकहत-ए-गुल के तो आशिक़ हैं सभी 'मीना' तुम बिस्तर-ए-ख़ार पे हँसने की अज़िय्यत लिखना