ऐ ख़ुदा भरम रखना बरक़रार इस घर का है तिरे करम पर ही इंहिसार इस घर का हर किवाड़ डूबा है बे-कराँ उदासी में और हर दरीचा ही सोगवार इस घर का फैलती चली जाए बेल बद-गुमानी की ख़त्म ही नहीं होता इंतिशार इस घर का इस जहाँ में होगा बे-अमल न हम जैसा हम न रख सके क़ाएम ए'तिबार इस घर का किस क़दर गुनाहों के मुर्तकिब हुए हैं हम जो सुकून लुटता है बार बार इस घर का गर्द बे-यक़ीनी की गर समेट लें मिल कर मो'तबर घरों में हो फिर शुमार इस घर का जान से गुज़रने का हौसला अता कर दे अब मकीं न हो कोई शर्मसार इस घर का