ऐ ख़ुदा तर मिरे सहराओं का दामन कर दे अब्र को मोड़ दे इस सम्त को सावन कर दे इस से पहले कि कोई तोड़ के बिखरा दे मुझे मेरे मालिक तू मेरे हौसले आहन कर दे ख़ार-ओ-ख़स की ही हुकूमत है गुलिस्तानों में अपनी रहमत से हरा मेरा ये गुलशन कर दे हिल्म ऐसा कि जो दुश्मन को बना ले अपना इल्म वो दे जो ख़यालात को रौशन कर दे तुझ को अल्लाह ने बख़्शा है 'शिफ़ा' क्या क्या कुछ बंद हर वक़्त का ये नाला-ओ-शेवन कर दे