ऐ ख़ुदा-ए-वहम मैं थक गया ये निज़ाम सोचते सोचते तिरी राह देखते देखते तिरा नाम सोचते सोचते तू ख़याल है कि सराए है जहाँ आ गया तो मैं बस गया मुझे रह गए मिरे जिस्म के दर-ओ-बाम सोचते सोचते न यहाँ का हूँ न वहाँ का हूँ तो कहाँ का हूँ मुझे ये बता ये मैं किस मक़ाम पे आ गया वो मक़ाम सोचते सोचते कहाँ कौन सम्त से आ गई मिरे वास्ते ये सदा-ए-क़ुम कहाँ कौन सम्त में चल दिए मिरे गाम सोचते सोचते यही सोचना तो अज़ाब है मिरी ज़ात का मिरी ज़ात पर कि शुरूअ' सब मिरे हो गए हैं तमाम सोचते सोचते