ऐ मेरे मन के शाह पिया मुझे आज भी तेरी चाह पिया मिरे दिल में सच्ची प्रीत तिरी तुझे कौन किया गुमराह पिया मैं गले में माला डाल फिरी मैं ने ओढ़ा रंग-ए-सियाह पिया तू जिस जिस रस्ते से गुज़रा मैं ने चूमी हर वो राह पिया मैं ने नौ मन तेल जलाया है धागे बाँधे दरगाह पिया मैं ने अश्क बहाए मस्जिद में तू लौटा क्यूँ ना आह पिया मिरे दर्द भरे इन शे'रों पर फिर लोग कहेंगे वाह पिया तिरे दर पर अर्ज़ी पेश करे तिरी शहज़ादी मिरे शाह पिया सुन रस्ता तकते नैन थके चल ढूँड नाँ कोई राह पिया तिरे हिज्र में चाँद को गहन लगा मिरा रंग हुआ है सियाह पिया