ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा थम न जाए कहीं जुनूँ आ जा रात से एक सोच में गुम हूँ किस बहाने तुझे कहूँ आ जा हाथ जिस मोड़ पर छुड़ाया था मैं वहीं पर हूँ सर निगूँ आ जा याद है सुर्ख़ फूल का तोहफ़ा? हो चला वो भी नील-गूँ आ जा चाँद तारों से कब तलक आख़िर तेरी बातें किया करूँ आ जा अपनी वहशत से ख़ौफ़ आता है कब से वीराँ है अंदरूँ आ जा इस से पहले कि मैं अज़िय्यत में अपनी आँखों को नोच लूँ आ जा देख! मैं याद कर रही हूँ तुझे फिर मैं ये भी न कर सकूँ आ जा