ऐ नक़्श-गरो लौह-ए-तहरीर हमें दे दो हम अपने मुसव्विर हैं तस्वीर हमें दे दो आग़ोश-ए-कमाँ अब तक अफ़्कार का ख़ाली है तुम अपनी निगाहों के कुछ तीर हमें दे दो क्या तोल रहे हो तुम हाथों में ख़िरद-मंदो ज़ेवर ये जुनूँ का है ज़ंजीर हमें दे दो ऐ ख़ाली कटोरों के बे-कैफ़ निगहबानों मय-ख़ाना हमारी है जागीर हमें दे दो तुम तो न झुका पाए गर्दन दिल-ए-सरकश की ऐ अहल-ए-सितम लाओ शमशीर हमें दे दो आशुफ़्ता लकीरें हैं तहरीर की नौ-मश्क़ी लिख लेंगे हमीं लौह-ए-तक़दीर हमें दे दो