ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़ By Ghazal << दाम-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-ब... उन के रुख़ पर जमाल है गोय... >> ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़ देखती क्या है उलट दे सफ़ की सफ़ देख वो गोरा सा मुखड़ा रश्क से पड़ गए हैं माह के मुँह पर कलफ़ आ गया जब बज़्म में वो शोला-रू शम्अ तो बस हो गई जल कर तलफ़ साक़ी भी यूँ जाम ले कर रह गया जिस तरह तस्वीर हो साग़र-ब-कफ़ Share on: