ऐ सैल-ए-आब ठहर अब के गर्दनों तक रह तनों की तख़्तियाँ धोनी हैं बस तनों तक रह जहाँ है शहर वहाँ दूर तक दरिंदे हैं ग़ज़ल, ग़ज़ाल के होंटों पे आ बनों तक रह गली में ताक में बैठे हैं तिफ़्ल-ए-संग-ब-दस्त ऐ मेरी ख़्वाहिश-ए-अय्यार आँगनों तक रह बहुत से काम हैं जिन से निपटना बाक़ी है विसाल-रुत तो बड़ी शय है सावनों तक रह हवा में तीर चलाने से फ़ाएदा 'जावेद' तिरी जब आँखें खुली हैं तो दुश्मनों तक रह